हम सब में माँ है
माँ अक्सर मिल जाती है
हमारी आँख में,आँख के पानी में
हमारे दिल दिमाग़ में
बचपन,बुढ़ापे या जवानी में
नाक, होंठ या चेहरे की बनवाट में
उठने बैठने के तरीके
काम करने के सलीके
और बातोंकी बुनावट में
हमारी आदत में दिखाई देती है
गुनगुनाने में सुनाई देती है
वो याद में ही नहीं
स्वाद में भी होती है
उँगली पकड़ कर किए सफ़र
में ही नहीं,बाद में भी होती है
दुनिया का पहला अक्षर है वो
लहज़े में आवाज़ में शामिल
आने वाले कल और आज में
पिता से छुपाये राज़ में शामिल
उसके हाथ के जैसा खाना दुनिया में कहीं नहीं
मिलता, और ना मिलती है उसके गोद जैसी सुरक्षा
उसकी ख़ुशी जैसी ठंडक
उसकी डॉट जैसी डाँट
उतनी ही होती है वो हम में
जितनी फलों के पेड़ में फलों के
अलावा होती है लकड़ी
थोड़ी देर हम रहते हैं माँ के भीतर
फिर माँ रहती है हमारे भीतर
सारी ऊम्र....
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